तन और मन को शक्ति प्रदान करने के लिए सूर्य नमस्कार एक बहुत ही उपयोगी आसन है। इसका वर्णन हमारे शास्त्रों में भी मिलता है। यह एक प्रभावशाली आसन है। अगर आप इस आसन को नियमित रूप से करते हैं, तो न केवल शरीर के जोड़ों की समस्या दूर होगी बल्कि मांसपेशियां भी ढिली होंगी। सूर्य नमस्काकर करते वक्तर 12 आसन किये जाते हैं जिससे आपके शरीर के आंतरिक अंगों की भी मालिश हो जाती है। दिन में किसी भी समय जब आपको थकान महसूस हो तो सूर्य नमस्कार के अभ्यास के साथ आप अपनी खोई हुई शारीरिक और मानसिक शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं।
Surya namaskar kaise kare in hindi – सूर्य नमस्कार कैसे करे
(प्रथम स्थिति) प्रार्थना की मुद्रा
पूरे शरीर को शिथिल करते हुए प्रार्थना की मुद्रा में दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाइये।
(द्वितीय स्थिति) हस्तोत्तानासन
कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों हाथों और सिर के धड़ को पीछे की ओर झुकाइये।
(तृतीय स्थिति) पादहस्तासन
फिर सामने की ओर झुकते हुए अंगुलियों और हाथों को जमीन पर टिकाइए तथा सिर को घुटने से स्पर्श करने की कोशिश कीजिए।
(चतुर्थ स्थिति) अश्व संचालनासन
बाएं पैर को पीछे की ओर फैलाइए तथा दायें पैर को मोड़िए और हाथ सीधे रखिए। ध्यान रखिए शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर की अंगुलियों पर रहेगा। अंतिम स्थिति में कमर को धनुषाकार दीजिए और सिर को पीछे उठाइए।
(पंचम स्थिति) पर्वतासन
दायें पैर को सीधा करके अपने नितंबों को ऊपर की ओर उठाइए। अपने सिर को नीचे रखिए तथा हाथों को सीधे जमीन पर स्पर्श कराइए।
(षष्ठ स्थिति) अष्टांग प्रणाम
शारीर को इस प्रकार जमीन की तरफ झुकाइए कि अंतिम स्थिति में दोनों पैरों की अंगुलियां, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ और ठुड्डी जमीन को स्पर्श करे।
(सप्तम स्थिति) भुजंगासन
फिर हाथों को सीधा रखते हुए शरीर को कमर से ऊपर ऊठाइए और सिर को पीछे की ओर झुकाइए।
(अष्टम स्थिति) पर्वतासन
भुजंगासन अंतिम अवस्था है इसके बाद अष्टम स्थिति में अपने शरीर को पर्वतासन में लाइए।
(नवम स्थिति) अश्व संचालनासन
पर्वतासन के बाद अपने शरीर को अश्व संचालनासन की स्थित में लाइए।
(दशम स्थिति) पादहस्तासन
अश्व संचालनासन के बाद अपने शरीर को वापिस तृतीय स्थिति पादहस्तासन में लाइए।
(एकादश स्थिति) हस्तोत्तानासन
पादहस्तासन के बाद अपने शरीर को वापिस द्वितीय स्थिति हस्तोत्तानासन में लाइए।
(द्वादश स्थिति) प्रार्थना की मुद्रा
हस्तोत्तानासन के बाद अपने शरीर को प्रथम स्थिति यानि प्रार्थना की मुद्रा में वापिस लाइए।