अक्सर कुछ बच्चों की नाक से रक्त बहते देखा जाता है। कभी धूप में तो कभी यूँ ही उनके नाक से रक्त बहकर बाहर निकलने लगता है। नाक से रक्त बाहर आने का एक मुख्य कारण नाक में चोट लगना है। कई बार यह रक्त सम्बन्धी विकारों और जुकाम के कारण भी बहता है।
क्या करें नाक से रक्त बहने पर
नाक से रक्त बहने पर प्राथमिक चिकित्सा के तौर पर बच्चों को सीधा बिठाकर उसका सिर नीचे झुका दें ताकि वह खून को निगले नहीं। बच्चे को लिटाकर उसका सिर एक तरफ करने से भी उन्हें आराम मिलता है। नाक से रक्त के बहने पर बच्चे को जोर से खाँसने न दें और न ही उन्हें छींकने दे। इन दोनों क्रियाओं में नाक पर दबाव पड़ने के कारण अत्यधिक रक्त बहने की सम्भावना बन जाती है।
नाक से रक्त बहने के दौरान गर्दन या सिर, होंठ अथवा माथे पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रखें। इन पट्टियों से मिलने वाली ठंड के कारण रक्त की कोशिकायें सिकुड़ जाती हैं और रक्त का बहना बंद हो जाता है। अगर ऐसा करने के दस मिनट बाद भी रक्त का बहना बंद नहीं होता तो चिकित्सक से सम्पर्क साधें। चिकित्सक की सलाहानुसार बच्चे का रक्त परीक्षण भी करायें। कोई गम्भीर घाव न होने पर चिकित्सक रक्त की कोशिका को बिजली जिसे डायथर्मी भी कहा जाता है द्वारा जला देता है।
मोच आने पर प्राथमिक चिकित्सा
असमान धरातल पर दौड़ने, गिरने इत्यादि के कारण हाथ वे पैरों में चोट लगती है अथवा सूजन हो जाती है। इस चोट या सूजन के कारण सामान्य क्रियाकलापों को पूरा करने में भारी पीड़ा का सामना करना पड़ता है।
बच्चे को मोच आने पर उसका चिकित्सीय परीक्षण और उपचार आवश्यक है। एड़ी में चोट आने पर बच्चे को लिटा दें और उसके पैरों को ऊँचा उठा दें। पैरों को ऊँचा उठाने में तकिये का सहारा लिया जा सकता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से सूजन और अंदरूनी रक्तस्राव की मात्रा अपेक्षाकृत कम हो जाती है। सूजन होने पर चिकित्सीय परामर्श और परीक्षण आवश्यक हैं, क्योंकि इसमें हड्डियों के चटकने या टूटने की सम्भावना प्रबल होती हैं।
क्या करें, जब बच्चा गिरे कलाई के बल
इस स्थिति की कल्पना ही अभिभावकों के चेहरों पर शिकन लाने के लिये काफी है। हालांकि, इस शिकन को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ऐसा तब हो सकता है जब अभिभावकों को यह जानकारी हो कि कलाई के बल गिरे बच्चे को कैसी प्राथमिक चिकित्सा मिलनी चाहिये। कलाई के बल गिरना ज्यादा समस्याप्रद होता है। कलाई पर सारा भार पड़ने से सूजन या अन्य लक्षणों के बिना भी इसके टूटने की सम्भावना बनी रहती है।
इसलिये मोच लगने पर चिकित्सक को इसलिये भी दिखाना चाहिये क्योंकि इससे अभिभावकों को बच्चों के प्रभावित हिस्सों की हड्डियों की स्थिति के विषय में आवश्यक जानकारी मिल जाती है। इन स्थितियों में बच्चों को ज्यादा या कम आराम मिलना इस बात पर निर्भर है कि प्रभावित हिस्से पर हड्डी कैसे बाँधी जा रही है। चिकित्सक मामाले की गम्भीरता को समझते हुए दर्द निवारक सुई लगाते हैं या दवाईयाँ देते हैं।