पुरुष स्तनों के निपल में जरुरत से ज्यादा वसा जमा होना या ग्रंथि युक्त टिश्यूज के बढ़ जाने की स्थिति को गायनीकोमैस्टिया कहा जाता है। गायनीकोमैस्टिया शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है। साधारण शब्दों में कहें तो गायनीकोमैस्टिया का मतलब पुरुष के स्तनों का महिलाओं की तरह दिखना। मां से भ्रूण में प्रवेश हुए एस्ट्रोजन की वजह से गायनीकोमैस्टिया के लक्षण नौवजात शिशुओं में देखने को मिलते है। हालांकि युवास्था में यह पूरी तरह से खत्म हो जाता है। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो यह हार्मोंस गड़बड़ी की वजह हो सकता है। गायनीकोमैस्टिया होने पर पुरुष का शरीर बहुत ही बेडौल नजर आता है। जिससे कई बार शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है।
गायनीकोमैस्टिया के लक्षण
गायनीकोमैस्टिया में स्तन में अनियमित आकार से वृद्धि हो जाती है। वहीं हाथ से छूने पर गांठ सी महसूस होती है। कई बार एक स्तन में तो कई बार दोनों स्तनों में ऐसी समस्या देखने को मिलती है। इस वजह से कई बार स्तन कैंसर होने का भी खतरा बढ जाता है।
गायनीकोमैस्टिया में क्या न करें
1. स्टेरॉयड, एण्ड्रोजन, हेरोइन, और मारिजुआना जैसे अवैध दवाओं के उपयोग से बचना चाहिए।
2. शराब का अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए।
3. गायनीकोमैस्टिया होने की स्थिति में परेशान होने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर की सलाह लेकर इलाज करने पर इससे पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सकता है।
गायनीकोमैस्टिया का इलाज
गायनीकोमैस्टिया होने के शुरूआती दो वर्षों में दवाओं के माध्यम से इलाज किया जाता है। अगर इससे भी फायदा नहीं मिलता है तो आखिरी इलाज सर्जरी का ही सलारा लेना पड़ता है। इसके लिए लाइपोसक्शन और सर्जिकल विधियों द्वारा अतिरिक्त वसा और ग्रंथि युक्त टिश्यूज को हटा दिया जाता है।
लाइपोसक्शन सर्जरी –
इस सर्जरी में एनेस्थीसिया देकर ऊपरी त्वचा को टाइट करना पड़ता है। पुरुष स्तन के निचले भाग में एक छोटा सा छेद किया जाता है। इसके बाद लाइपोसक्शन कैन्सुला डालकर पता किया जाता है कि कितनी वसा निकालनी है। इसके बाद जमी वसा को बाहर निकाल दिया जाता है। इस सर्जरी में कमी यह है कि इससे स्तन ग्रंथि ऊतक को बाहर नहीं निकाला जा सकता है।
मैस्टेक्टमीसर्जरी –
यह सर्जरी लाइपोसक्शन सर्जरी से इस मामले में अलग होती है कि इस सर्जरी में स्तन की ग्रंथि ऊतक को काटकर बाहर निकाल दिया जाता है।
पुल थ्रू सर्जरी –
यह सर्जरी बेहद कम चीरफाड़ वाली आधुनिक सर्जरी है। इसमें निपल के पास एक छोटे से छेद के माध्यम से चर्बी और ग्रंथियुक्त टिश्यूज को बाहर निकाल दिया जाता है। इसमें शरीर पर कम से कम निशान पड़ते हैं। हालांकि सर्जरी के बाद एक हफ्ते तक साफ-सफाई का ध्यान रखना होता है। ऐसा नहीं होने पर शरीर में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।