प्लूरिसी मानव के शरीर में होने वाला एक रोग होता है। हमारे फेफड़े और छाती की अंदरूनी दोहरी परत को जो पतली झिल्ली होती है उसे हम प्लुरा कहते हैं। जब इस झिल्ली पर किसी तरह का कोई संक्रमण हो जाता है तो उसे हम प्लूरिसी रोग कहते हैं। जब भी किसी व्यक्ति को इस रोग का सामना करना पड़ता है तो उसके फेफड़े की झिल्ली थोड़ी मोटी हो जाती है।
जिसके कारण इसमें पाई जाने वाली दोनों सतह एक दुसरे से टकराने लगती है। इन दोनों सतह के मध्य द्रव्य भरा रहता है जो इस रोग के कारण एक ही स्थान पर ठहर जाता है और अपने स्थान से बाहर निकालकर अन्य स्थान पर जमा होने लगता है। जब हमारी झिल्ली में सूजन पैदा हो जाती है तो रोगी को अपनी छाती में तेज चुभन जैसा दर्द महसूस होने लगता है।
प्लूरिसी रोग के लक्षण
प्लूरिसी रोग के लक्षण इस प्रकार से है-
छाती में तेज दर्द होना
तेज ठंड का एहसास होना
छाती का भारी होना
बुखार आना
भूख न लगना
शरीर का वजन कम होना
सांस लेते और छोड़ते समय तेज दर्द होना
झिल्ली से दूषित द्रव्य बाहर निकलना छाती में भर जाना ।
प्लूरिसी रोग के कारण
झिल्ली में सूजन तीन प्रकार की होती है शुष्क प्लूरिसी, नम प्लूरिसी, एम्पाइमा, जो शुष्क प्लूरिसी होती है। वह फेफडे के बैक्टीरिया संक्रमण या छाती की मांसपेशियों के ख़ास संक्रमण के साथ जुड़ी हुई होती है। इसमें फेफड़ो में टी.बी, ट्यूमर, कैंसर, पेट के कुछ अंगों में सूजन होना आदि। ह्रदय, गुर्दे और यकृत में से किसी एक का सही तरीके से काम न करना और उसमें पानी भर जाना चोट लगने से प्लुरा में रक्त एकत्रित होना और उसमे संक्रमण होने से भी एम्पाइमा का खतरा हो सकता है।
प्लूरिसी रोग के उपचार
प्लूरिसी का घरेलू उपचार भी किया जा सकता है जैसे कि…
- जो लोग प्लूरिसी रोग से पीड़ित होते हैं। उन्हें फलों के क्रस का सेवन करना चाहिए और कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए।
- उपवास के दौरान रोगी को हर रोज गर्म पानी का सेवन करके एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए और फिर कुछ समय तक अपने शरीर पर गीली चादर लपेट कर रखनी चाहिए।
- रोगी को गुनगुने पानी के साथ अपने शरीर पर स्पंज करना चाहिए और उसके साथ गीली पट्टी को अपनी छाती पर लपेट कर रखना चाहिए। इस पट्टी को दिन में बदलते रहना चाहिए।
- इस दर्द से राहत पाने के लिए रोगी को अपनी छाती में गर्म सेंक देना चाहिए।
- रोगी को नियमित रूप से श्वास व्यायाम करते रहना चाहिए।
- तुलसी के पत्तों का रस सुबह और शाम को लेने से प्लूरिसी में बहुत ही फायदा मिलता है।