जब भी कोई महिला पहली बार मां बनती है तब उसे बच्चे की देखभाल से संबंधित कई दिक्कते आती हैं, जिसके कारण वे महिलाएं इसी बात को लेकर बहुत परेशान रहती है। आज हम आपको बच्चों के लिए टिप्स के बारे में बताएंगे। जिसको पढ़कर आप अपने बच्चों की सही से देखभाल कर सकते हैं। बच्चों की देखभाल में मालिश, ध्यान से नहलाना, आराम से सुलाना आदि का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आइये विस्तार से जानते हैं, बच्चों के लिए टिप्स के बारे में।
बच्चों की देखभाल के लिए टिप्स
मालिश करें
बच्चें की मालिश एक पुराना चलन है, लेकिन माता पिता इस बात से परेशान है कि बच्चे की मालिश किस समय करें। हम आपको बताते हैं कि बच्चे की मालिश दूध पीने से पहले और बाद में नहीं करनी चाहिए। नहाने से पहले बच्चें की मालिश करना अच्छा होता है।
ध्यान से नहलाएं
नवजात बच्चों की सेहत बहुत ही नाजुक होती है, जिससे अधिक समय तक पानी में रहने से वह सुख जाता है। ध्यान दें कि बच्चे को नहलाते समय पानी अधिक गर्म न हो। शुरुआत के तीन हफ्ते में गिले कपड़े से बदन को पोछना काफी होता है। बच्चे को नहलाते समय अगर आप बेबी शेम्पू का इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक हाथ से बच्चें की आंखों ढंक लेना चाहिए।
आराम से सुलाएं
माता पिता को चाहिए कि वो अपने बच्चे को आराम से सुलाएं कई माता पिता बच्चे को सुलाने से पहले कपड़ों की कई परते पहना देते हैं। ख़ास कर रात को इसके उपर वह बच्चें के उपर कंबल भी ओढ़ा देते हैं। जबकि इसकी कोई जरूरत नहीं होती अधिक गर्मी बच्चे के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसलिए बच्चे को सोते समय हल्के फुल्के कपड़े पहनाने चाहिए।
दांतों की देखभाल
बच्चों के दांत नाजुक होते हैं, उन्हें ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है। जब बच्चे के दांत आना शुरू हो जाते हैं, तब उन्हें सोने से पहले दूध पिलाना बंद कर देना चाहिए। अगर आपने बच्चें को अभी तक ब्रश नहीं करवाते तो दूध पिलाने के बाद गीले कपड़े के साथ बच्चे के दांत साफ कर देने चाहिए।
रोने से घबराएं नहीं
बच्चे अक्सर रोते हैं ऐसे में घबराने वाली कोई बात नहीं होती। उनके रोने का मतलब यह नहीं कि आप कुछ गलत कर रहे हैं बल्कि यह उनका आपसे बात करने का तरीका है। मुंह में पेसिफायर लगा हो तो बच्चे कम रोते हैं।
कुदरत के साथ जोड़े
बच्चों को जितना हो सके कुदरत के साथ जोड़े। आज के समय के माता पिता अपने बच्चों को मोबाइल, टेबलेट और टीवी से अवगत करा देते हैं, ऐसा गलत है। कम से कम दो साल की उम्र तक बच्चों को इससे दूर रखना चाहिए। इन दो सालों में बच्चों को कुदरत के साथ जोड़ना चाहिए।
खेल खेल में सिखाएं
बच्चों को खेल-खेल में बच्चों को नई चीजे सीखते हैं। बच्चे सिर्फ वस्तुओं को ही नहीं पहचानना ही नहीं सीखते बल्कि ख़ुशी और गुस्से जैसे भावों को भी समझाने लगते हैं। बच्चों से बात करते हुए मुस्कुराएँ और उस समय उनकी आँखों से संपर्क बना कर रखें।
रंगों के बीच
बच्चों के आसपास रंग हो उन्हें बहुत अच्छा लगता है। आठ से नौ महीने के होने पर बच्चे अलग अलग तरह की सुगंध, रंग, शोर और स्पर्श को पहचानने लगते हैं।