अर्थराइटिस जिसे हम आम भाषा में गठिया और जोड़ों का दर्द वाली बीमारी भी कहते है, इसके होने की कोई निश्चित वजह बता पाना बहुत ही मुश्किल है। मेडिकल साइंस की भाषा में इस बीमारी को आटो-इम्यून डिज़ीज़ कहा जाता है। आम जोड़ों के दर्द यानी अर्थराइटिस में एक बीमारी न होकर कई तरह की परेशानियां शुमार होती हैं, जिनमें सूजन आना और हाथ-पैर के जोड़ों में तेजदर्द होना खास है। यूं तो अर्थराइटिस को बुजुर्गो की लाइलाज बीमारी मानी जाती है, लेकिन ऐसा सोचना बिल्कुल गलत होगा। इस बीमारी में होने वाले जोड़ों के दर्द की एक वजह रूमेटॉयड अर्थराइटिस भी हो सकती है। यह बीमारी काफी कम उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाती है। यही नहीं, पुरुषों के मुकाबले चार गुणा ज्यादा महिलाएं इसकी गिरफ्त में आती हैं।
क्या है रूमेटॉयड अर्थराइटिस?
क्या आप जानते हैं कि हमारा इम्यून सिस्टम प्रोटीन, बायोकेमिकल्स और कोशिकाओं से मिलकर बनता है, जो हमारे शरीर को बाहरी चोटों और घुसपैठियों, जैसे कि बैक्टीरिया और वायरस से सुरक्षा प्रदान करता है। आखिर यह एक सिस्टम ही है और इससे भी गलती हो सकती है। यह आपके शरीर में मौजूद प्रोटीन्स को ही नष्ट करना शुरू कर देता है, जिससे रूमेटॉयड अर्थराइटिस जैसी ऑटो-इम्यून बीमारियां हो जाती हैं। रूमेटॉयड अर्थराइटिस का असर जोड़ों पर सबसे ज्यादा होता है, लेकिन एक सीमा के बाद यह स्नायुतंत्र और फेफड़ों पर भी असर डालने लगता है।
आपको बता दें कि रूमेटॉयड अर्थराइटिस आमतौर पर 30 से 45 साल के लोगों को होता है। सही समय पर अगर इस बीमारी का पता चल जाए तो दवाओं से इसका इलाज हो सकता है। इस बीमारी के प्रमुख लक्षण है – जोड़ों में अकड़न, दर्द या सूजन की शिकायत होना। अगर ठीक समय पर इसका इलाज नहीं कराया गया, तो शरीर बेडौल हो जाने का भी जोखिम रहता है।
क्या है रूमेटॉयड अर्थराइटिस के लक्षण
रूमेटॉयड अर्थराइटिस आपको तीन (3) स्टेज में अपना शिकार बनाती है। आइए बताते हैं वह तीन स्टेज-
पहला स्टेज: इसके शुरुआत में मरीज को बार-बार बुखार आएगा, मांसपेशियों में दर्द रहेगा, हमेशा थकान और टूटन महसूस होगी, भूख कम हो जाएगी है और वजन भी घटने लगेगा।
दूसरा स्टेज: सुबह बिस्तर से उठने का मन बिल्कुल भी नहीं करेगा, हाथ-पैर इस कदर अकड़ जाएंगे कि उन्हें नॉर्मल होने में 15-20 मिनट लग जाएंगे।
फाइनल स्टेज: शरीर के तमाम जोड़ों में इतना दर्द होगा कि उन्हें हिलाने पर ही चीख निकल जाएगी, खासकर सुबह के समय। इसके अलावा शरीर गर्म हो जाता है, लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं और जलन की शिकायत होती है। जोड़ों में जहां-जहां दर्द होता है, वहां सूजन आना भी इस बीमारी में आम है।
रूमेटॉयड अर्थराइटिस का इलाज
डॉक्टर की सलाह लेने पर डिज़ीज़-मोडिफाइड-एंटीरूमेटिक-ड्रग्स लेना शुरू कर दें। हालांकि यह दवाएं थोड़ी महंगी जरूर होती हैं, लेकिन इनसे जोड़ों के दर्द से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है। ऐसे मरीजों को फिजियोथैरेपी और कसरत का सहारा भी लेना पड़ता है।
रूमेटॉयड अर्थराइटिस के मरीजों के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह हमेशा खुद को व्यस्त और शारीरिक तौर पर सक्रिय रखें। यह ध्यान रहें कि, बीमारी का असर तेज होने पर ऐसा करना ठीक नहीं होगा। जब जोड़ों में ज्यादा दर्द, सूजन या जलन हो तो आराम करना बहुत जरूरी है। ऐसे में हल्के व्यायाम से जोड़ों की अकड़न कम हो सकती है। टहलना, ऐरोबिक्स और मांसपेशियों की हल्की कसरत भी मरीज को आराम देती है।
रूमेटॉयड अर्थराइटिस की दवाएं पहले की तुलना में काफी एडवांस्ड हो चुकी हैं और इनके साइड इफैक्ट्स भी काफी कम हो गए हैं। बता दें कि आजकल दवाएं सुरक्षा के लिहाज से काफी कड़े और गहरे परीक्षण के बाद ही बाजार में उतारी जाती हैं, और इसीलिए यह पहले से ज्यादा असरदार साबित होती हैं।
आप अपने खानपान के जरिए भी रूमेटॉयड अर्थराइटिस के लक्षणों को समय रहते कम जरूर कर सकते हैं। ऐसे लोग जो सैचुरेटेड फैट्स से बचते हैं, और अनसैचुरेटेड फैट्स से भरपूर खुराक जैसे कि फिश ऑयल वगैरह लेते हैं, उनमें इस बीमारी के लक्षण कम ही नजर आते हैं।
रूमेटॉयड अर्थराइटिस के मरीजों के लिए – क्या करें और क्या नहीं
यह बीमारी जितनी जल्द हो सके उतनी जल्दी इलाज मांगती है। समय से इलाज शुरू कर देंगे, तो तकलीफ ज्यादा नहीं बढ़ेगी।
सेल्फ मेडिकेशन न करें।
विशेषज्ञ डॉक्टर से इलाज के संबंध में जरूर जानकारी ले। गलत थैरेपी का चुनाव करने से आपको लेने के देने भी पड़ सकते हैं।
फिजियोथैरेपी और पुनर्वास कार्यक्रम का पालन अनुशासित ढंग से करें। इसमें विशेषज्ञ की गाइडेंस होनी बहुत जरूरी है।