तनाव, चिंता तथा क्रोध पर अगर काबू पाना चाहते हैं तो मूर्छा प्राणायाम कीजिए। यह आसन न केवल मानसिक समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए उपयोगी है बल्कि धातु रोग और नपुंसकता जैसे रोगों में भी असरदार है।
मूर्छा प्राणायाम की विधि
इस प्राणायाम के लिए स्थिर और अचल आसन की आवश्यकता है। पद्मासन या सिद्धासन उत्तम हैं। सिर को थोड़ा पीछे छुकाकर आकाशी मुद्रा करते हुए पूरक कीजिए। ध्यान रखिए पूरक दोनों नासिका- छिद्रों से दीर्घ परंतु धीरे हो। अंतरंग कुम्भक कीजिए तथा शाम्भवी मुद्रा करते हुए स्थिर रहिये। भुजाओं को एकदम सीधा रखिये और घुटनों को हाथों से दबाइए। हाथों को मोड़ते हुए तथा सिर को सामने पूर्व स्थिति में लाते हुए रेचक कीजिये तथा नेत्र को बन्द रखिए।
इसके बाद सम्पूर्ण शरीर को कुछ सेकेण्ड के लिए शिथिल कीजिए। इस अवस्था में आप शरीरिक एवं मानसिक रूप से शांति एवं हल्केपन का अनुभव कीजिए। इसे बार-बार अभ्यास में लाइए।
मूर्छा प्राणायाम – समय
बिना तनाव के अधिकतम अवधि तक अभ्यास कर सकते हैं। ध्यान रखिए अभ्यास के साथ ही धीरे- धीरे अवधि में वृद्धि करने की कोशिश कीजिये। बेहोशी की अनुभूति तक जितनी आवृत्तिया सम्भव हों कीजिये। योग विशेषज्ञों की माने तो इस प्राणायाम को आसन के उपरांत या निद्रा से पूर्व करना चाहिए। इससे शारीरिक एंव मानसिक लाभ मिलता है।
मूर्छा प्राणायाम के लाभ
- ध्यान की अच्छी तैयारी कराता है तथा मन को अंतर्मुखी बनाता है।
- यह प्राणायाम मनुष्य को आत्मिक स्तर तक पहुंचाने में मदद करता है।
- शारीरिक एवं मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।
- तनाव, चिंता तथा क्रोध को दूर करने के लिए यह उपयोगी प्राणायाम है।
- जो व्यक्ति रक्तचाप, विक्षेपों व मानसिक समस्याओं से ग्रस्त है उसके लिए यह प्राणायाम लाभप्रद है।
- धातु रोग, प्रमेह और नपुंसकता आदि रोगों में यह असरदार है।
मूर्छा प्राणायाम की सावधानियां
जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है या जिन्हें चक्कर आते हो उन्हें यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए। मस्तिक – दाब से पीड़ित व्यत्तियों के लिय यह अभ्यास वर्जित है।