गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों के शरीर में परिवर्तन होता है। सामान्य तौर पर यह परिवर्तन प्रसव तक जारी रहती है। शरीर में होने वाले परिवर्तनों के कारण या कुछ अन्य कारणों से भी स्त्रियों को छोटी-मोटी शिकायतें हो जाती हैं। अमूमन ये शिकायतें खुद ही ठीक हो जाती है और स्त्रियाँ सामान्य हो जाती हैं। ये हैं वो सामान्य शिकायतें-
छाती की जलन
गर्भवती स्त्रियों में छाती की जलन पित्त बढ़ने के कारण होती है। ऐसी स्थिति से गुजरने पर नींबू चूसें अथवा नींबू मिले पानी का सेवन करें। मिल्क ऑफ मैग्नेशिया की गोली भी इस जलन से राहत दिलाने में कामगार मानी जाती रही है।
जी मिचलाना और उल्टी
गर्भवती स्त्रियों का जी मिचलाता और उन्हें उल्टी आना सामान्य माना जाता है। यह विकार केवल सुबह एकया दो घंटों के लिये होती है। मौसम अगर गर्मी का हो तो नींबू की मीठी या नमकीन ठंडी शिकंजी या दूसरे ठंडे पेय लाभ करते हैं। सुबह नींद से जगने के बाद बिस्कुट, मुरमुरे, भुने चने खा लेने से राहत मिलती है। अमूमन छह सप्ताह में यह शिकायत खुद ही दूर हो जाती है।
कब्ज़
गर्भधारी स्त्रियों को अक्सर कब्ज़ की शिकायत हो जाती है। सामान्य प्रकृति की होने के कारण इसके लिये दवाईयों का सेवन करने से बचें। इसके बजाय कब्ज़ दूर करने के लिये एक गिलास पानी में चार चम्मच शहद और एक नींबू मिलाकर पी लें। हरे पत्तों वाली सब्जियाँ और मौसमी फल कब्ज़ दूर करने में सहायक होते हैं।
मूर्च्छा
मूर्च्छा या बेहोशी हर गर्भवती स्त्री को नहीं होती। कभी रसोई घर में अधिक गर्मी या अधिक शारीरिक मेहनत के कारण गर्भवती स्त्री बेहोश हो सकती है। थोड़े समय बाद ही वह स्वयं सामान्य हो जाती है।
टांगों और टखनों की सूजन
गर्भ धारण करने के तीन महीनों के बाद पेट का भार बढ़ जाता है। इस कारण से शरीर का जलीयभाग नीचे की तरफ उतर आता है जिससे टांगें और पैर भारी हो जाते हैं। गर्मी में अथवा खड़े रहने पर सूजन बढ़ जाती है। गर्भवती स्त्रियों को दिन में किसी समय अपनी टांगें ऊँचे स्थान पर रखनी चाहिये अथवा टांगों को फैलाकर बैठना चाहिये। टांगों को ठंडे पानी में डुबोकर बैठने से भी आराम मिलता है।