दुर्घटना की तिथि या समय निर्धारित नहीं होती. इस जब घटना होता है, घट जाती है. किसी दुर्घटना के कारण गम्भीर रूप से घायल होने वाले व्यक्ति को सदमा पहुँच सकता है. इसके परिणामस्वरूप रोगी में शक्ति नहीं होती और शारीरिक क्रियायें मन्द पड़ जाती है.
सदमे के कारण मस्तिष्क के उन भागों जो रक्त वाहिनियों की पेशियों पर नियंत्रण रखते हैं, अपना कार्य बंद कर देते हैं जिससे की बड़ी शिरायें फैल जाती है. शरीर का रक्त मस्तिष्क से निकलकर इन्हीं शिराओं में एकत्रित हो जाता है. इस कारण मस्तिष्क में रक्त की कमी हो जाती है और व्यक्ति मूर्च्छित हो जाता है. सदमा के कारणों में अत्यधिक रक्तस्राव, अधिक पीड़ा या अत्यधिक चिंता करना शामिल है.
सदमा के लक्षण
सदमे के कारण होंठ और चेहरा नीला पड़ जाता है. सदमे से व्यक्ति को(रोगी को) चक्कर आने लगते है और उसका शरीर शिथिल पड़ने लगता है. सदमा प्रभावित व्यक्ति का शरीर ठंडा होने लगता है और उसके माथे पर ठंडे पसीने की बूँदें आने लगती है. सदमे के कारण रोगी के धमनी की धड़कन धीमी हो जाती है, लेकिन फिर वह क्षीण और तेज हो जाती है. प्रभावित को प्यास लगने की शिकायत रहती है. रोगी अचेत तो हो ही जाता है उसका दिल भी मिचलाता है. सदमा प्रभावित व्यक्ति उल्टी करने की शिकायत करता है.
इस दौरान क्या करें
प्रभावित व्यक्ति के हाथों को सिर के ऊपर मोड़ कर उसके पीठ को सहलायें. पीठ पर दबाव दें और उसके मुड़ी हुई कोहनियों को पकड़ें. उन्हें ऊपर की ओर उठाएं. सदमा प्रभावित व्यक्ति धीरे-धीरे सामान्य साँसें लेने लगेगा.
ये है सदमा का उपचार
रोगी की छाती, कमर और गर्दन के आस-पास के कपड़े ढ़ीले कर उसे सांत्वना दें. सदमा प्रभावित व्यक्ति को धैर्य दें. ऐसे व्यक्ति को ठंड से बचाकर गरम रखने का प्रयास करना चाहिये, पर अधिक गरमी में न रखें. इसके नुकसान भी हो सकते हैं. सदमा प्रभावित व्यक्ति को प्यास लगने पर पानी, चाय और कॉफी पिलायें. बेहोशी की अवस्था में रूमाल को अमोनिया में भिगोकर प्रभावित व्यक्ति के नाक के समीप रखें. ऐसे समय में उन्हें शराब आदि पीने नहीं दें.