चेचक के लक्षण, कारण और उपाय

चेचक रोग वेरिसेला जोस्टर के वायरस की वजह से होता है। यह रोग वेरिसेला जोस्टर के वायरस के द्वारा फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी है। यह बीमारी ज्यादातर बच्चों में देखने को मिलती है। हालांकि वयस्कों में भी कई बार यह बीमारी देखने को मिलती है। इस बीमारी में शुरुआत में शरीर पर रेशे दिखायी देते हैं, जिसका संक्रमण तेजी से शरीर में होता है और दो ही दिन में पूरे शऱीर को अपनी चपेट में ले लेती है। चेचक का असर दो से तीन हफ्तों तक रह सकता है। चेचक को बड़ी और छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। 1718 में यूरोप में लेडी मेरी वोर्टले मौंटाग्यू ने पहली बार चेचक के इलाज के लिए सुई प्रचलित की और 1798 में जेनर ने इसके टीके का आविष्कार किया। चेचक विषाणु जनित रोग है। इस रोग के विषाणु त्वचा की लघु रक्त वाहिका, मुंह, गले में असर दिखाते है, मेजर विषाणु ज्यादा मारक होता है। कई बार चेचक की वजह से चेहरे पर दाग, अंधापन जैसी समस्या हो जाती है। चेचक एक संक्रामक रोग है। चेचक का संक्रमण ठंड और गर्मी के सीजन में बढ़ जाता है गर्भवती महिलाओं में चेचक होने पर डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

चेचक का रोग वेरिसेला जोस्टर के वायरस के द्वारा फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी है। चेचक को बड़ी माता और छोटी माता के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसा रोग होता है जिससे अधिकतर रूप से बच्चे ही ग्रस्त होते हैं। यह रोग जब भी किसी व्यक्ति को होता है तो दो से तीन दिन में यह पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले लेते हैं और 10 से 15 दिन इसे ठीक होने में लग जाते हैं लेकिन इसके कारण जो हमारे चेहरे पर दाग पड़ते हैं, उसे ठीक होने में लगभग पांच से छ: महीने लग जाते हैं। यह रोग बसंत ऋतू या ग्रीष्म ऋतू में होता है अगर इसका उपचार जल्दी न किया जाए, तो चेचक वाले व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। इस रोग के कारण चेहरे पर दाग और अंधापन जैसी समस्या भी हो जाती है। जब भी किसी गर्भवती महिला को चेचक हो जाता है तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

चेचक के कारण

चेचक के इस रोग को हम साधारण भाषा में माता या शीलता भी कहते हैं। यह रोग अक्सर उन बच्चो को होता है, जिन बच्चो के शरीर में अधिक गर्मी होती है और उनकी उम्र लगभग दो से चार बर्ष तक की होती है। लेकिन कई बार इस रोग का सामना औरतों, और बड़ों को भी करना पड़ जाता है। इस रोग को फैलने का सबसे बड़ा कारण वायरस होता है। इस रोग के जो जीवाणु होते हैं जो थूक, मलमूत्र, और नाखूनों आदि में पाएं जाते हैं, और यह जीवाणु हवा में घुलकर श्वास के द्वारा हमारे शरीर में आसानी से प्रवेश हो जाते हैं। इस रोग को आयुर्वेद में मसूरिका के नाम से भी जाना जाता है।

चेचक रोग के लिए वेरिसेला जोस्टर मुख्य रुप से जिम्मेदार होता है। इसके साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर भी चेचक हो जाता है। जैसा कि पता है कि चेचक एक संक्रामक बीमारी है इसीलिए चेचक के फफोलों का पानी दूसरे व्यक्ति के लगने पर चेचक रोग के होने की संभावना बढ़ जाती है।

चेचक के लक्षण 

अगर चेचक रोग हो तो प्यास ज्यादा लगती है और पूरे शरीर में दर्द होने लगता है। इसमें बुखार होने के साथ शरीर का तापमान बढ़ जाता है और ह्रदय की गति भी तेज होने लगती है। धीरे-धीरे शरीर पर लाल रंग के दाने निकलने लगते हैं जो पकने के बाद सूख जाते हैं लेकिन शरीर पर दाग रह जाते हैं।आइए हम इसे विस्तार से जानते हैं.

जब भी यह रोग हमें होता है, तो हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है हमारा बुखार 104 डिग्री तक बढ़ जाता है। जो व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त होता है, उसे बहुत ही बैचेनी होती है और उसे प्यास भी अधिक लगती है, साथ में पुरे शरीर में दर्द होने लगता है, ह्रदय की धड़कन तेज हो जाती है जमाक हो जाता है। चेचक होने पर दो- तीन दिन के बाद बुखार तेज हो जाता है, चेचक वाले रोगी के पूरे शरीर पर लाल रंग के दाने निकलने लगते हैं, उन लाल रंग के दानों में पानी जैसा मवाद पैदा हो जाता है। लगभग सात दिनों की अंदर ये दानें पकने लगते हैं और बाद में यह धीरे-धीरे करके सुख जाते हैं और फिर बाद में पपड़ी जम जाती है कुछ दिनों के बाद वो पपड़ी निकल जाती है, लेकिन उसके दाग शरीर पर रह जाते हैं।

चेचक के प्रभाव

चेचक रोग होने से पहले जी मिचलाना, सिर दर्द, पीठ में पीड़ा का अनुभव होता है। हालांकि कई बार चेचक होने पर शरीर में ऐंठन, ज्वर, गलशोथ, खाँसी, गला बैठ जाना तथा नाक बहने की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

चेचक के घरेलू उपचार

चेचक के रोग का अभी तक कोई पूरी तरह प्रमाणित इलाज नहीं है। हालांकि कुछ घरेलू उपायों को अपनाकर कुछ फायदा मिल सकता है।

चेचक के रोगी को एक ग्लास पानी और आधा ग्लास बेकिंग सोडा के घोल को देना चाहिए। चेचक के फफोलों पर शहद लगाने से भी राहत मिलती है। विटामिन ई का तेल चेचक के फफोलों पर लगाने से बहुत जल्द ही फायदा मिलता है। चेचक रोग होने पर नीम की पत्तियों, बकाइन पेड़ की पत्तियां को पीसकर लगाने से राहत मिलती है, साथ ही चेचक के दाग भी जल्द कम हो जाते हैं। भूरा सिरका चेचक के इलाज में लाभदायक होता है। यह त्वचा की जलन को कम करने में मदद करता है और फफोले की बढ़ोत्तरी को रोकता है। नहाते समय इसे उपयोग में लाने पर चेचक के रोग के इलाज में मदद मिलती है। गाजर और हरी धनिया का सूप शरीर को ठंडा रखता है। जिससे चेचक के रोग में फायदा मिलता है।कैलामाइन लोशन को चेचक के फफोलों पर लगाने से चेचक के रोगी को फायदा मिलता है। इसे लगाने से चेचक के दाग को कम करने में भी सहायता मिलती है। हालांकि इसके प्रयोग का एक साइड इफेक्ट्स यह है कि कई मरीजों को खुलजी की समस्या हो जाती है।

चेचक वाले व्यक्ति को इन दोनों किन किन चीजों से परहेज रखना चाहिए और क्या खाना चाहिए वो कुछ इस प्रकार से हैं :-

1. जब भी छोटे बच्चे को चेचक होता है, तो उसे दूध, मूंग की दाल, रोटी, हरी सब्जियां, मौसमी फल या उसका जूस देना चाहिए।
2. उसके घर वालो को सब्जी आदि में छौका नहीं लगाना चाहिए।
3. रोगी को गर्म मसाले वाला भोजन, तली हुई वस्तु, ठंडी या गर्म चीजें नहीं देनी चाहिए।
4. इस में बुखार अधिक होने पर रोगी को दूध और चाय के अलावा और कुछ नहीं देना चाहिए।
5. रोगी के कमरे के बाहर नीम की टहनी लटका देनी चाहिए, कुछ पत्ते उसके बिस्तर पर बिछा देने चाहिए।
6. नीम की पत्तियों को पीसकर रोगी को शरीर पर लगाना चाहिए। इससे उसके शरीर को ठंडक मिलती है।
7. चेचक के रोगी को एक गिलास पानी और आधा गिलास बेकिंग सोडा का घोल देना चाहिए।
8. रोगी के शरीर के फफोलों पर शहद लगाना चाहिए।
9. भूरा सिरका चेचक में बहुत लाभकारी होता है, इससे त्वचा की जलन कम होती है साथ में यह इसकी बढ़ोतरी को रोकने में मदद करता है।
10. जो गर्भवती महिलाएं होती है, उन्हें चेचक के रोगी से दूरी बना कर रखनी चाहिए। अगर वो इसकी चपेट में आ जाए तो उन्हें तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

चेचक का टीका
वैरिसेला वैक्सीन को हम चेचक का टीका भी कहते हैं। यह टीका वैरिसेला जोस्टर विषाणु (वायरस) से होने वाले चेचक के लिए प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है। इस टीके को बहुत ही सुरक्षित माना गया है। टीके की एक खुराक से चेचक की गंभीर बीमारियों से छुटकारा मिलता है। माना यह जाता है कि चेचक के दो टीके की बजाय एक टीका लेना ज्यादा प्रभावशाली होता है। यह सुई के जरिए लोगों को दिया जाता है। व्यावसायिक रूप से वैरिसेला वैक्सीन पहली बार 1984 में बाजार में उपलब्ध हुआ। इसका विपणन वैरिवैक्स के नाम से किया जाता है। विश्व स्तर पर इस टीके का विपणन ग्लैक्सोस्मिथलाइन करती है।