ट्यूबरक्लोसिस का संक्षिपत रुप (टीबी) है। यह एक संक्रामक बीमारी है। जिसे क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग सबसे अधिक फेफड़ों पर अपना असर दिखाता है। हालांकि धीरे-धीरे शरीर के बाकी हिस्सों को अपनी चपेट में ले लेता है। टीबी का मुख्य कारण तपेदिक माइकोबैक्टीरियम है। टीबी के बैक्टीरिया की खोज रॉबर्ट कॉक द्वारा 24 मार्च 1882 को किया गया था। उनकी इस खोज के लिये उनको 1905 में फिजियोलॉजी या चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। टीबी एक जानलेवा बीमारी है। हालांकि समय पर इलाज होने पर रोगी की जान बचायी जा सकती है।
कैसे फैलती है टीबी
टीबी रोगी के शरीर को धीरे-धीरे खोखला कर देती है। टीबी के बैक्टीरिया साँस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं। किसी रोगी के खाँसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूँदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में साँस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं। इस रोग में रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगती है। भारत में टीबी के मरीजों की तादात कम नहीं है। अगर 2010 के आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि भारत में टीबी के सबसे अधिक मामले थे।
टीबी के कारण
जैसा कि मालूम है कि टीबी एक संक्रामक रोग है। इसीलिए रोगी के संपर्क में रहने से भी टीबी होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए टीबी के रोगी के पास मास्क लगाकर जाएं।
टीबी के लक्षण
टीबी की शुरूआत तो हल्की खांसी के साथ होती है। लेकिन कई बार जब खांसी हफ्तों तक ठीक नहीं होती है तो टीबी होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि सभी खांसने वालों को टीबी हो ऐसा संभव नही है। लेकिन सामान्य चिह्नों और लक्षणों में बुखार,ठंड लगना, रात मे पसीना आना, भूख न लगना, वजन घटना और थकान भी टीबी होने की संभावनाओं को बल देत हैं। इसके साथ ही उंगलियों में सूजन आना टीबी रोग की ओर इशारा करती हैं। वहीं जब टीबी रोग काफी पुराना हो जाता है तो खांसते वक्त खून आने लगता है। मनुष्य का वजन घटने लगता है।
टीबी का इलाज
भारत सरकार और स्वास्थ्य संगठन के सम्मिलित प्रयास से टीबी के मरीजों के इलाज के लिए लगभग सभी जिला अस्पताल में डॉट केंद्र की स्थापना की गयी है। अगर किसी को टीबी के रोग के होने की संभावना हो तो वो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र जाकर बलगम जांच कराकर दवा ले सकता है। अगर अस्पताल जाने में संभव नहीं हैं, तो केंद्र सरकार की ओर से जारी 180011666 नंबर पर मिस कॉल करके इलाज कराया जा सकता है। कॉल करने के 48 घंटे में कॉल बैक होगा और मरीज की जानकारी लेकर इलाज शुरू हो जाएगा। अगर मरीज ज्यादा गंभीर है तो उसे जिला मुख्यालय स्थित अस्पताल में रेफर किया जा सकता है। टीबी का इलाज लंबा होता है। कई बार रोगियों को छ माह से लेकर दो साल तक दवा लेनी पड़ सकती है। हालांकि सक्रिय टीबी का इलाज रेडियोलोजी के साथ-साथ माइक्रोस्कोपिक जांच तथा शरीर के तरलों की माइक्रोबायोलॉजिकल कल्चर पर निर्भर करता है।